लोकप्रिय पोस्ट

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

चोरी का तोहफ़ा


मैं बचपन से अच्छे माहौल में नहीं रहा हूँ। मैं चोरी बहुत कुशलता से कर लेता हूँ। पर इसके लिये भाग्य का भी आपके साथ होना जरूरी है।शारीरिक सुडौलता एक आवश्यक गुण है। इसके लिये मैं हमेशा कठिन योग भी करता हूँ और जिम भी जाता हूँ। मेरा शरीर एक दम चुस्त और वी शेप का है। मैं सुबह सुबह मैदान के चार से पांच चक्कर लगाता हूँ। मेरी चोरी करने के कपड़े भी एकदम बदन से चिपके हुए होते हैं। तो आईये चलते हैं चोरी करने. मेरे सामने एक मकान है। उसमें एक छोटा सा परिवार रहता है। सिर्फ़ मियां-बीवी और उनकी एक १८-१९ साल की लड़की वहां रहती है। पैसा अच्छा है. जो सामने वाले कमरे कि अल्मारी में रखा है। उसकी अलमारी की चाबी मालकिन के पास उसके तकिये के नीचे होती है। रात की शिफ़्ट में मालिक काम करता है। मालिक ड्यूटी पर जा चुका है। मैं मकान के पास, कभी पान की दुकान पर या पास की चाय की दुकान पर मंडरा रहा हूँ। कमरे की लाईट अभी जल रही है. मैने समय देखा रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे। और अब लाईट बन्द हुई है। मैंने टहलते हुये उस घर का एक चक्कर लगाया. सभी कुछ शान्त था। १२ बज चुके हैं।. मैं घर के पिछ्वाड़े में गया और एक ही छलांग में चाहरदीवारी पार कर गया। बिना कोई आवाज किये बाल्कनी के नीचे आ गया। उछल कर बालकनी में आ गया। थोड़ी देर इन्तजार करके खिड़की को धीरे से धक्का दिया. मेरी आशा के अनुरूप खिड़की खुली मिली. मैने धीरे से कदम अन्दर बढ़ाया। कमरे मे पूरी शान्ति थी। सामने बिस्तर था। मैं दबे पांव वहां पहुँचा। वहां पर, जैसा मैंने सोचा था, घर की मालकिन सो रही थी। मै चाबी निकालने के लिये ज्यों ही झुका. “मैने दरवाजा खुला रखा था. खिड़की से क्यों आये” फ़ुसफ़ुसाते हुये मालकिन ने कहा। मै घबरा गया। पर मेरा दिमाग कंट्रोल में था। “बाहर से कोई देख लेता तो” मैंने हकलाते हुए कहा, “लेट क्यो आये, इतनी देर कर दी”. “लाईट जली थी, मैं समझा कि कोई है” उसने मुझे अपने बिस्तर पर मुझे खींच लिया. “तुम मनोज के दोस्त हो ना, क्या नाम है तुम्हारा”. “जी, सोनू है”. “अरे, मनोज तो रवि को भेजने वाला था, तुम कौन हो”. ” जी, मैं रवि ही हूँ. सोनू तो मुझे प्यार से कहते हैं”. “अरे सोनू हो या मोनू, तुम तो बस शुरू हो जाओ” उसने मुझे अपनी बांहों मे कस लिया। मुझे अहसास हुआ वो बिलकुल नन्गी थी। मैं चोरी के बारे में भूल गया। मेरे शरीर मे गर्मी आने लगी वो किसी का इन्तजार कर रही थी। शायद रवि का, “दरवाजा खुला है क्या ?”. “अरे हां, ” वो जल्दी से उठी और दरवाजा बन्द करके आ गई। मैने भी अपने कपड़े उतार लिये और नंगा हो गया। “आपका नाम क्या है,” मैने उसका नाम पूछ ही लिया. “कामिनी, क्यों मनोज ने बताया नहीं क्या”. मैने कुछ नहीं कहा, उसने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया. और बेशर्मी से अपने होंठ मेरे होंठो से चिपका दिये। मेरे बदन में वासना भड़क उठी। उसका नंगा बदन मुझे रोमान्चित कर रहा था। मेरा लण्ड जाग चुका था। और अपने काम की चीज़ ढूंढ रहा था।फ़ड़फ़ड़ाती चिड़िया को कामिनी ने तुरन्त अपने कब्जे में ले लिया। मेरे लण्ड पर उसके हाथ कस चुके थे और अब उसे मसल रहे थे। मेरे मुख से आह निकल गई. मैंने उसे चूमना जारी रखा, तभी “बहन के लौड़े, मेरी चूंचियां तो दबा” उखड़ती हुई सांस और एक गाली दी. मैं और उत्तेजित हो गया। उसके बोबे बड़े थे. दबा दिये और उन्हें मसलने लगा। “मेरी जान, जल्दी क्या है. देख तेरी चूत को कैसा चोद कर भोंसड़ा बना दूंगा”. कामिनी मेरे लण्ड की खाल को ऊपर नीचे मुठ मारने जैसी चलाने लगी। मैने जोश में आकर उसके चूतड़ों को दबा डाला। “हाय रे मेरी गाण्ड मसल दी, बहन चोद, मेरी गाण्ड मारनी है क्या” वो वासना में डूब चुकी थी। “इच्छा है तो कहो, आपका गुलाम हूँ” मैने उसकी चमचागिरी की। “तो चल चोद दे पहले मेरी गाण्ड. फिर मेरा भोंसड़ा चोद देना” उसकी भाषा, हाय रे, मुझे उत्तेजित कर रही थी। शायद वो बहुतों से चुदा चुकी थी. और उसकी गाली देने की आदत पड़ गई थी। मैंने उसके मस्त चूतड़ दबाने और मसलने चालू कर दिये। उसके मुख से सिसकियाँ निकलने लगी। वो सीधी लेटी थी। मैंने उसकी चूतड़ों के नीचे तकिया लगाया और गाण्ड ऊंची कर दी। मैने उसकी गाण्ड पर अपना लण्ड टिका दिया और जोर लगाने लगा। मेरे दोनो हाथ फ़्री थे। मेरा लण्ड उसकी गाण्ड मे उतर गया. मैने उसके बोबे दबाये और उसकी गाण्ड को चोदना चालू कर दिया। वो मस्त होने लगी। कुछ देर बोबे मसलने के बाद बोबे छोड़ कर उसकी चूत में अपनी अंगुली घुसा दी। वो चिंहुक उठी। बोली -”हरामी ये तरीका किसने बताया रे, मस्त स्टाईल है. अब तो चूत में भी मजा आ रहा है।” ” कामिनी जी, आपकी चूत मस्त है, अगर इसकी मां चुद जाये तो आपको मजा आ जायेगा ना”. “हाय मेरे सोनू,  तूने ये क्या कह दिया. मां चोद दे मेरी भोसड़ी की, हाय, सच में बहुत प्यासी है रे” मेरा लण्ड अब थोड़ा तेजी पर था। मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी, उसकी गाण्ड थोड़ी सी टाईट भी थी। मेरे धक्के उसकी गाण्ड में और उसकी चूत में मेरी अंगुलियां तेजी से चल रही थी। वो लगभग चीखती हुई सिसकारियां भर रही थी। उसे डबल मजा जो मिल रहा था। अब मेरा भी लण्ड फूल कर बहुत ही मस्त हो रहा था। मुझे लग रहा था कि ऐसे ही अगर गाण्ड चोदता रहा तो मैं झड़ जाऊंगा। मैने अपना लण्ड अब गाण्ड में से निकाला और उसकी चूत में फ़ंसा दिया। मेरा सुपाड़ा उसकी चूत में फ़क से फ़िट हो गया । “हाय्…री… गया अन्दर… चुद गई…रे……” वो मस्त होती हुई सिसकने लगी। मुझे भी तेज आनन्द की अनुभूति हुई. उसे अपनी चूत में लण्ड उतराता हुआ मह्सूस हो रहा था। मेरे लण्ड की चमड़ी रगड़ खाती हुई तेज मजा दे रही थी। मैने अपने धक्के लगा कर चूत की गहराई तक अपना लण्ड गड़ा दिया। अब मै उसके ऊपर लेट गया और अपने हाथो से शरीर को ऊंचा उठा लिया। मुझे लण्ड और चूत को फ़्री करके तेजी से धक्के लगाना अच्छा लगता है। अब मेरी बारी थी तेजी दिखाने की। जैसे ही मैने अपना पिस्टन चलाना चालू किया वो भी बड़े जोश से उतनी ही तेजी से अपने चूतड़ों को उछाल उछाल कर साथ देने लगी। “तू तो गजब का चोदता है रे, मुझे तूही रोज़ चोद जाया कर”. “मत बोलो कुछ भी, मुझे बस चोदने दो, हाय रे…कितना मजा आ रहा है”. “मादरचोद…रुक जा…झड़ना मत……वर्ना मेरी चूत को फिर कौन चोदेगा”. “चुप रहो … छिनाल… अभी तो चुद ले… झड़े तेरी मां… कुतिया…” मेरे धक्के बढ़ते गये। उसकी सिसकारियां भी बढ़ती गई. उसकी गालियां भी बढ़ती गई. अचानक ही गालियों की बौछार बढ़ गई. “हरामी … चोद दे……मेरी भोसड़ी फ़ाड़ डाल…… मेरी बहन चोद दे… कुत्ते… मार लण्ड चूत पर… हाय रे मेरी मां” मैं समझ गया कि अब कामिनी चरमसीमा पर पहुंच रही है। मैंने भी अपने आप को अब फ़्री छोड़ दिया झड़ने के लिये। “मर गई रे…… भोंसड़ी के… लगा… दे धक्के… निकाल दे मेरा पानी… मादरचोद रे…अरे…गई… निकला रे……हाऽऽऽऽय री मां”. और वो झड़ने लगी। मैने भी लण्ड अब उसके भोंसड़े में जोर से गड़ा दिया। और जोर लगाता रहा. दबाव से मेरे लण्ड ने वीर्य की पिचकारी छोड़ दी। मेरा लण्ड झटके मार मार कर वीर्य उसके चूत में छोड़ रहा था। कामिनी ने मुझे अपनी टांगों के बीच मुझे जकड़ लिया था। दोनो का रस एक साथ ही निकल रहा था। हम आपस में चिपके रहे। अब मैं बिस्तर से नीचे उतर गया था। “बस कामिनी जी, आपने तो मेरा पूरा रस निकाल दिया”. “……ये लो… कल दरवाजे से आना……” कामिनी ने मुझे ५०० का एक नोट दिया”. तुम बहुत अच्छा चोदते हो. अब मुझे किसी दूसरे की जरूरत नहीं है”. मैने झिझकते हुए रुपये ले लिये और चुपचाप सर झुका कर दरवाजा खोला और बाहर निकल गया।

1 टिप्पणी: